जिंदगीका अहम् और ....बहुत कुछ...
वह एक दिन था संस्मरणीय(21/11/71)
जीवन दिशा बदलनेवाली थी हवा
चाहतभरी,शंकाओंसे घिरी पर प्रिय
युवक-युवती विवाह वेदीवर
अनभिज्ञ चारोंओरके माहौलसे
अपनेही खयालोंमें मशगुल,नजरें हुई चार
अचानक उभरी स्मितरेखा दिलसे
होना ही था,हो गया यथा योग्य
मान्य-अमान्य वैचारिक आदान-प्रदान
सुखीसंसार चल पडा मंजिल दर मंजिल
दशकोंके हिसाबसे आयी पाचवी पायदान
क्या श्रीमानजीसे होती है लडाई?
किसी मित्रने पूछा था सवाल
हाॅं,जानती हूॅं ना लग्नसिद्ध अधिकार!
तभी तो,जीवनमें आयी बहार-धमाल
जो ठानी कर दिखानेकी हिम्मत रखी
मित्र-परिवारके साथने बनाया धनवान
कोई गिलाशिकवा नहीं जिंदगीसे
पुत्र-पौत्रोंके साथ था दयावान भगवान
बस एक साल पहले हुआ अघटित
सहजीवन हुआ खंडित ........
साथ जीनेके आज पूरे होते पचास साल (21/11/21 )
चलों करें उनकी आत्माको आनंदीत........
विजया केळकर________
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