kavita
शीर्षक | कवयित्री | प्रतिक्रिया | नवीन |
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अंगारिका | विजया केळकर | 11 | |
महालक्ष्मी आरती | विजया केळकर | 6 | |
तू जेव्हा श्रावण बनून आला | देवयानी | 2 | |
रक्षा-बंध | विजया केळकर | 2 | |
जेव्हा वयाची पंचाहत्तरी येते | विजया केळकर | 25 | |
जेव्हा वयाची पंच्याहत्तरी येते — २ | विजया केळकर | 3 | |
चांदणी चौक | मॅगी | 26 | |
उड्डाणपूल | वावे-विशाखा | 6 | |
वारी | देवयानी | 9 | |
अंतरीच्या गाभाऱ्यातून.. | मी कल्याणी | 3 | |
सुप्रभात ( चित्राधारीत ) | विजया केळकर | 6 | |
आठवण | ज्ञाती | 7 | |
स्थलांतर -१ | नीधप | 18 | |
स्थलांतर - २ | नीधप | 43 | |
रक्ताची चटक लागलेले चाकू सुरे खुले आम हिंडत आहेत. | वृंदा | 20 | |
आठवण | विजया केळकर | 20 | |
कवितेच्या बनात... | अवनी | 98 | |
घे पांघरुन चांदण्या....... | विजया केळकर | 11 | |
आठवणी | देवयानी | 9 | |
मेघकिनारा.. | मी कल्याणी | 9 | |
नव वर्ष | विजया केळकर | 5 | |
ही प्रीत विलक्षण | सुप्रु | 9 | |
सोबत | विजया केळकर | 24 | |
शोध | प्रफे | 5 | |
सूर्यबलक | मॅगी | 19 | |
वाटेवर चालत जाता... | मी कल्याणी | 8 | |
आनंदयात्री | मी कल्याणी | 0 | |
वाट | सुप्रु | 7 | |
पुन्हा एकदा | कविन | 12 | |
जीर्ण गोष्ट | प्रफे | 17 |
पाने
हिंदी / मराठी
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