शेरदिल : द पीलीभीत सागा- नरो वा शार्दूलो वा- वाघ का माणूस #साभार आंतरजाल (#स्पॉयलर्स असतील) न सके तो सुन मन गुंज हो अलख जगा मन स्वयं स्वयं में मन मुस्कावे जिव भूलकावे पीको प्रेम ज़रे लाज ना लागी हां जो जागी बदली जे ही घडी मोह में बांधे सधे ना साधे चुलबुल चित धरे माया खेला है अलबेला खुल खुल खेल करेKeywords: शेरदिलपंकज त्रिपाठी Read more about शेरदिल : द पीलीभीत सागा- नरो वा शार्दूलो वा- वाघ का माणूसLog in or register to post comments